एक सेठजी का आकस्मिक स्वर्गवास हो गया। उनके बाद उनका लड़का मालिक बना। उसने एक दिन अपने पुराने मुनीम जी से पूछा कि मुनीम जी हमारे पास कितना धन है? मुनीम ने सोचा अभी यह लड़का है,इससे क्या कहें,क्या न कहें। मुनीम जी ने कहा-"सेठजी,आपके पास इतना धन है कि आपकी तेरह पीढ़ी बैठे-बैठे खा सकती हैं।" इसे सुनकर सेठजी का चेहरा उदास हो गया। सोचने लगे कि तेरहवीं पीढ़ी तक का तो इंतजाम है,लेकिन चौदहवीं पीढ़ी क्या खायेगी? सेठजी चिन्तित रहने लगे,जिसके कारण भूख और नींद ही हवा हो गई,तबियत उदास रहने लगी। सेठ जी को उदास देखकर मुनीम जी ने पूछा-"सेठ जी! एक उपाय करो। आप एकादशी का व्रत रखा करो और द्वादशी के दिन किसी सन्तोषी ब्राह्मण को सीधा(अन्नदान) दान कर दिया करो। आपकी सब चिंताएं दूर हो जायेंगी।
"सेठ जी ने ऐसा ही किया। तीन दिन बाद एकादशी थी। सेठ जी ने एकादशी का व्रत किया। दूसरे दिन प्रातः मुनीम जी से बोले-"सीधा अपने हाथ से ही ब्राह्मण को देना चाहिए।" सेठ जी ने एक सीधा लगवाया और मुनीम जी को साथ लेकर ब्राह्मण के दरवाजे पर गये। पंडित जी!सीधा ले लीजिये। पण्डित जी ने कहा-ठहरिये,मैं भीतर पण्डितानी से पूछ आऊँ।वह भीतर गए और पंडितानी से पूछा-"आज का क्या प्रबंध है?" ब्राह्मणी ने कहा-'आज का सीधा आ गया है।' पंडित जी बाहर आये और सेठजी से बोले-"सेठजी!आज का सीधा हमारे यहाँ आ गया है,आप इसे किसी दूसरे ब्राह्मण को दे दीजिये।" सेठजी बोले-"आज का आ गया है तो क्या हुआ,यह आपको कल काम देगा।"ब्राह्मण देवता ने कहा-"जिसने आज का प्रबंध किया है,वही कल का भी करेगा। हम भविष्य की चिंता नहीं करते।" ऐसा सुनते ही सेठजी सोचने लगे,"मुझे तो चौदहवीं पीढ़ी की चिंता है और इस ब्राह्मण को कल की भी चिंता नहीं!" सेठ जी की भीतरी आँखे खुल गई,उनकी चिंता दूर जो गई। भगवान का अनन्त भक्त भविष्य की चिंता नहीं करता।