घर पहुँची,अपनी भीख यथा स्थान रखी और बैठ गई। सोचने लगी,"जंजीर को सुनार के पास ले जाऊंगी और इसे बेचकर पैसे खरे करुँगी।" यह सोचकर जंजीर एक कोने में एक ईंट के नीचे रख दी। भोजन बनाकर और खा पीकर सो गई। प्रातःकाल उठी,शौचादि से निवृत्त हुई तो जंजीर के सम्बन्ध में जो विचार सुनार के पास ले जाकर धन राशि बटोरने का आया था उसमें तुरंत परिवर्तन आ गया। बुढ़िया के मन में बड़ा क्षोभ पैदा हो गया। सोचने लगी-"यह पाप मेरे से क्यों हो गया? क्या मुँह लेकर उस घर पर जाऊंगी?" सोचते-सोचते बुढ़िया ने निर्णय किया कि जंजीर वापिस ले जाकर उस गृहिणी को दे आयेगी। बुढ़िया जंजीर लेकर सीधी वहीं पहुँची। द्वार पर बालक की माँ खड़ी थी। उसके पांवों में गिरकर हाथ जोड़कर बोली-"आप मेरे अन्नदाता हैं। वर्षों से मैं आपके अन्न पर पल रही हूँ। कल मुझसे बड़ा अपराध हो गया,क्षमा करें और बालक की यह जंजीर ले लें।"
जंजीर को हाथ में लेकर गृहिणी ने आश्चर्य से पूछा-"क्या बात है? यह जंजीर तुम्हें कहाँ मिली?" भिखारिन बोली-"यह जंजीर मैंने ही बालक के गले से उतार ली थी लेकिन अब मैं बहुत पछता रही हूँ कि ऐसा पाप मैं क्यों कर बैठी?"
गृहिणी बोली-"नहीं, यह नहीं हो सकता। तुमने जंजीर नहीं निकाली। यह काम किसी और का है,तुम्हारा नहीं। तुम उस चोर को बचाने के लिए यह नाटक कर रही हो।"
"नहीं,बहिन जी,मैं ही चोर हूँ। कल मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। आज प्रातः मुझे फिर से ज्ञान हुआ और अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए मैंने आपके सामने सच्चाई रखना आवश्यक समझा," भिखारिन ने उत्तर दिया। गृहिणी यह सुनकर अवाक् रह गई।
भिखारिन ने पूछा-"क्षमा करें,क्या आप मुझे बताने की कृपा करेंगी कि कल जो चावल मुझे दिये थे वे कहाँ से मोल लिये गये हैं।"
गृहिणी ने अपने पति से पूछा तो पता लगा कि एक व्यक्ति कहीं से चावल लाया था और अमुक पुल के पास बहुत सस्ते दामों में बेच रहा था। हो सकता है वह चुराकर लाया हो। उन्हीं चोरी के चावलों की भीख दी गई थी।
भिखारिन बोली-"चोरी का अन्न पाकर ही मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी और इसी कारण मैं जंजीर चुराकर ले गई। वह अन्न जब मल के रूप में शरीर से निकल गया और शरीर निर्मल हो गया तब मेरी बुद्धि ठिकाने आई और मेरे मन ने निर्णय किया कि मैंने बहुत बड़ा पाप किया है। मुझे यह जंजीर वापिस देकर क्षमा माँग लेनी चाहिए।"
गृहिणी तथा उसके पति ने जब भिखारिन के मनोभावों को सुना तो बड़े अचम्भे में पड गये। भिखारिन फिर बोली-"चोरी के अन्न में से एक मुठ्ठी भर चावल पाने से मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो सकती है तो वह सभी चावल खाकर आपके परिवार की क्या दशा होगी,अतः, फेंक दीजिए उन सभी चावलों को।" गृहिणी ने तुरन्त उन चावलों को बाहर फेंक दिया।"
गृहिणी तथा उसके पति ने जब भिखारिन के मनोभावों को सुना तो बड़े अचम्भे में पड गये। भिखारिन फिर बोली-"चोरी के अन्न में से एक मुठ्ठी भर चावल पाने से मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो सकती है तो वह सभी चावल खाकर आपके परिवार की क्या दशा होगी,अतः, फेंक दीजिए उन सभी चावलों को।" गृहिणी ने तुरन्त उन चावलों को बाहर फेंक दिया।"
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